Thursday, August 13, 2020

अकाबीर का पैगाम - 04

 

🎯  बाबरी मस्जिद हमें क्या सबक दे गई ?

✍️  हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी साहब दामत बरकातुहूम
(तर्जुमान व सेक्रेटरी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड)

____ज़िंदा कोमों का काम यह नहीं कि वह हादसात पर रंज व गम का इजहार करें, बल्की वह हादसात से सबक लेती हैं
और पूरी ताक़त से एक नये मुस्तक-बिल का मंसूबा बनाती है। इस बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर की तामीर हादसे का सबक यह है कि:
             मस्जिदों से हमारा रिश्ता मजबूत हो, सूरत-ए-हाल यह है कि नमाज़े फज्र अदा करने वाले मुसलमानों की तादाद 1 फ़ीसद से भी कम है, पंच वक्ता नमाज की पाबंदी करने वाले 20-25 फीसद होंगे, शायद वह समझते हैं कि उनके लिए सिर्फ जूमआ की नमाज़ ही फर्ज़ की गई है। 15-20 फीसद मुसलमान वो हैं जो करोबार और तालिम और मुख्तलिफ बहानों से जूमआ भी छोड़ देते हैं और शायद ईद की नमाज़ के सिवा कभी उनकी पेशानी खुदा की चौखट पर नहीं झुक पाती। अगर मुसलमान खुद मस्जिदों से अपना ताल्लुक तोड़लें तो मस्जिद की हिफाजत कैसे होगी? जिस मकान की तरफ से मकान मालिक की तवज्जोह हट जाति है, वह बहुत जल्द वीरान और खंडर हो जाता है। मुसलमान खुद मस्जिदों को आबाद ना करें और सरकार से उम्मीद रखें कि वह मस्जिद की हिफाज़त करेगी इससे भी बड़ी कोई ना समझी हो सकती है अगर हम खुद मस्जिदों का हक अदा करेंगे तो अल्लाह तआला इसकी बरकत से हमारी मस्जिदों की हिफाजत फरमाएंगे___

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