Tuesday, September 1, 2020

अकाबिर का पैग़ाम - 13



🎯 नई नस्ल को सहाबा-ए-इकराम की सीरत से रोशनास कराएँ!


✍️हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी साहब (द.ब)

(सदर जमीयत उलमा-ए-हिंद)


_______नई नस्ल बड़ी हद तक सहाबा-ए-इकराम की दीन के लिए की गई ख़िदमात से पूरी तरह वाक़िफ नहीं है, क्योंकि उसे आम स्कूलों में ये सब पढ़ाया और बताया नहीं जाता और अक्सर ओ बेशतर लोग अपने बच्चों को दीन की तालिमात दिलाने में लापरवाही करते हैं। इन हालात में सख़्त ज़रूरत है कि नई नस्ल को सहाबा इकराम की अज़्मत, शुजाअत, इबादत और सख़ावत से रोशनास कराया जाए। जमीयत उलमा-ए-हिंद ख़ालिस मज़्हबी जमात है हम, अल्लाह और रसूल का पैग़ाम दुनिया तक पहुंचते हैं और हमें कुछ लेना देना नहीं है। हमारा मक्सद अज्मत-ए-सहाबा के किरदार को आप तक पहुंचाना है। कुरआन जन्नत कि ज़मानत या तो सहाबा-ए-इकराम को देता है या उनलोगों को देता है कि जो उनके नक़शे क़दम पर चलते हैं_______

(माखूज़ अज़ बयान ब-उनवान अजमत-ए-सहाबा कान्फ्रेंस, ब-मुकाम बैंगलोर, अप्रैल 2016)


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