🎯 शिर्क वाले आमाल व रुसूम में शिरकत ना जाइज़ व हराम है!
✍️ हज़रत मौलाना अबुल हसन अली मियां नदवी (र.ह)
__इस तफसील से कम से कम मुसलमानों को और पढ़े-लिखे माकुलियत व इंसाफ पसंद गैर मुस्लिम भाइयों को जिनकी यकीनन हर जगह बहुत बड़ी तादाद है यह बतलाना मकसूद है कि मुसलमानों के लिए ना सिर्फ मुश्रीकाना आमल व रूसुम में शिरकत करना ना जाइज़ और हराम है, बल्कि उन तकरीबात व रुसुम में शिरकत करना ममनू है, जिनमें शिर्क का शाईबा भी हो या जो शीर्क का जरिया बन सकती हो या जिन में शिरकत करने से मुसलमान के दिल से अकीदा ए तोहिद का एहतराम और उसकी अहमियत कम हो जाने का अंदेशा हो, ऐसी हालत में ख़ालिस मजहबी नुकता ए नजर से किसी मुसलमान के लिए उसकी मुतलकन गुंजाइश नहीं है।"__
(तकबीर मुसलसल, सफा नंबर 239)
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Thursday, August 13, 2020
अकाबीर का पैगाम - 07
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